Wednesday 5 September 2018

Nepal Yatra ( नेपाल यात्रा पार्ट -3) लुम्बिनी (Lumbini)

अपनी यात्रा की पहली रात कोहलपुर में बिताने के बाद हम लोग अगली सुबह कोहलपुर से आगे निकल गए, और हमने लुम्बिनी जाने का निर्णय लिया और हम लोग लुम्बिनी के लिए निकल पड़े। 

लुम्बिनी में राजकुमार सिद्धार्थ की जन्मस्थली मानी जाती है जो आगे चलकर बौद्ध घर्म के संस्थापक बने और  गौतम बुद्ध के नाम से विश्व भर मे प्रसिद्ध हुये।


लुम्बिनी एक आध्यात्मिक जगह है,जहां पर अध्यात्म को मानने वाले लोगो का आवागमन वर्ष भर रहता है।

लुम्बिनी बौद्ध धर्म के लोगो के लिए एक तीर्थ है और दुनिया भर के बौद्ध धर्म के अनुयायी यहां  पर आते है।

लुम्बिनी छेत्र नेपाल के तराई वाले भाग में आता है, यहां से थोड़ी ही दूरी पर भारत का छेत्र शुरू हो जाता है,हम लोग मध्य अक्टूबर के महीने में गए थे फिर भी लुम्बिनी में बहुत गर्मी हो रही थी।


                                        
लुम्बिनी नेपाल

लुम्बिनी में बहुत से मंदिरो एवं मठों  का निर्माण कराया जा रहा है जो की अलग अलग देशो के बौद्ध घर्म के अनुयायियों द्वारा या वहा की सरकार द्वारा निर्माण किया जा रहा है जो की बहुत ही सुंदर दिख रहे है। जैसे श्रीलंका , भूटान ,म्यांमार ,चीन आदि देशो के बौद्ध मठ बने है। 

    
गौतम बुद्ध की प्रतिमा


समय के अभाव के कारण हम लोग सभी मंदिरो एवं मठो के दर्शन नहीं कर पाए क्योकि हमें अपने आगे की यात्रा को निकलना था जिसके कारण हम लोगो ने सिर्फ मायादेवी के मंदिर के दर्शन किये जिसको राजकुमार सिद्धार्थ  के जन्म स्थान माना जाता है।

मायादेवी मंदिर के अंदर जो शिला राखी गयी है उसे सिद्धार्थ के जन्म के स्थान की शिला माना जाता है और यहां  पर अशोक स्तम्भ के शिला भी राखी गयी है।

 
मायादेवी मंदिर

इसी मंदिर के भीतर शिला रखी गयी है।

मायादेवी के दर्शन के उपरांत हम लोग भैरवा के लिए निकल पड़ेजो कि 20 कि0 मी0 की दूरी पर है यहा से हम लोग बुटवल होते हुए नारायणगढ़ (भरतपुर) पहुंचे तथा में रात्रि विश्राम नारायणगढ़ में किया। 

कैसे जाये

लुम्बिनी जाने के लिए गोरखपुर (भारत ) से भैरवा होते हुये निकट है वैसे आप लखनऊ (भारत ) से नेपालगंज -कोहलपुर से जा सकते है जो की लगभग 240 किमी0 है और ४ घंटे का समय लगता है अगर आप भारत  से जा रहे हो तो।

कब जाये

लुम्बिनी, नेपाल का तराई का छेत्र है, साल के बारह महीने आप यहा जा सकते है फिर भी ग्रीष्म ऋतु में जाने से बचे क्योकि यहा पर काफी गर्मी पड़ती है।

कहां ठहरे

हम लोगो को काठमांडू जाना था तो हमने लुम्बिनी में रात्रि विश्राम नहीं किया। लुम्बिनी में बहुत से होटल एवं गेस्ट हाउस है जहा पर किफायती दरों पर ठहरा जा सकता है।

अगर आप लुम्बिनी जाना चाहते है तो २-३ दिन के लिए जाइये क्योकि आप पूरी लुम्बिनी को १ दिन में नहीं देख सकते है। 





Saturday 11 August 2018

नेपाल यात्रा पार्ट - 2

जैसा कि मैंने अपने पहले मेरी नेपाल यात्रा पार्ट -1 बताया कि कैसे आप नेपाल बॉर्डर पर कागजी करवायी को पूरा कर सकते है।

अपने यात्रा के सम्बन्धित कागजी करवाई मैं हमें लगभग एक घंटे का समय लग गया उसके बाद हम महेन्द्रनगर की और चल दिए जो कि चार किमीO है गड्डाचौकी से महेन्द्रनगर पहुंचने पर हमने आर0 टी0 ओ (
क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय) मे  जाकर अपना रोड टैक्स भरा जो कि नौ दिनों क लिए था (अगर आप पुरे नेपाल मे घूमने का प्लान बना रहे है  तो परमिट पर ऑल  नेपाल  लिखवाना ना  भूले ) और अब हम अपने नेपाल कि यात्रा करने को तैयार थे।

लगभग दिन के दो बजे के आस पास हम कोहलपुर क लिए चले जो की दो सौ किमीO की दुरी पर स्थित है और लगभग चार घंटे का समय लगता है।


महेन्द्रनगर से काठमाण्डू को जाने वाली रोड बहुत अच्छी स्थिति मे है, बहुत कम गड्डे सड़क पर मिलेंगे। रोड पर गाड़ी चलना आरामदायक होता है।

लगभग दो घंटे की सफर करने के बाद  हम चिसापानी जगह पर रुके जो की एक छोटा सा कस्बा है जिसे कर्णाली नदी के किनारे पर बसाया गया है, जिसको पार करने के बाद बर्दिया नेशनल पार्क की सीमा प्रारम्भ हो जाती है।

कर्णाली ब्रिज

एक घण्टा चिसापानी मे ठहरने के बाद हम कोहलपुर के लिए निकल पड़े जो की ७८ किमी0 की दुरी पर है, कर्णाली ब्रिज को पार करने एक बाद हम बर्दिया नेशनल पार्क की सीमा मे प्रवेश कर गये जो की बहुत घना जंगल है।

बर्दिया नेशनल पार्क बर्दिया जिले मे  स्थित है और इस जगह को नेपाली सरकार द्वारा संरक्षित किया गया है सन 1988 मे,ये पार्क नेपाल का सबसे बड़ा पार्क है जो की नेपाल के पश्चिमांचल के तराई वाले भाग पर स्थित है।

बर्दिया नेशनल पार्क में बहुत सी प्रजाति के जंगली जानवर पाए जाते है जिनमे प्रमुख एक सींग वाला गैंडा है जिसे चितवन नेशनल पार्क से यह विस्थापित किया गया है जिनकी संख्या अब बाद रही है, यहा  पर अन्य जानवर भी पाए जाते है जैसे की मगरमच्छ, घड़ियाल, टाइगर, जंगली हाथी और विभिन्न प्रकार की चिड़ियाएं देखने को मिलती है।


हम लोगो को वह की पुलिस ने पहले ही चेतावनी दे राखी थी की हमें कही प भी अपनी वाहन को रोकना नहीं  है, एक निश्चित गति पर अपनी वाहन को चलना है
और उनके द्वारा दी गयी समय पर ही पहुंचना है नहीं तो आपको नेपाल के ट्रैफिक नियम के अनुसार कारवाई हो सकती है।

हम लोग उनके दिए हुए सलाह के अनुसार ही चल रहे थे।

हम लगभग साम के ६ बजे के आस पास कोहलपुर पहुंचे जहा पर मैंने पहले से ही अपने परचित होटल मालिक से  बुकिंग करवा लिया था जो को हमारे  पहले से ही जानने वाले थे।

हम लोग कोहलपुर के एक नामी होटल मे रुक रहे थे होटल सेंट्रल प्लाजा में और इस होटल के मालिक है श्री देवानन्द अर्याल जी, जो बहुत हंसमुख व जिम्मेदार इंसान है।



होटल सेंट्रल प्लाजा कोहलपुर
   कोहलपुर भेरी अंचल के बांके जिला में स्थित है यहां से १६ किमी0 की दूरी पर नेपालगंज स्तिथ है जहा पर एयरपोर्ट है। नेपालगंज से इंडियन सीमा शुरू हो जाती है। कोहलपुर को सेंटर पॉइंट माना जाता है नेपाल मे प्रवेश के लिए।

हम लोगो के पहुंचते ही हमें हमारा कमरा दे दिया गया थोड़ा आराम करने के बाद हम देव अर्याल जी से मिले और उनसे वहा की जानकारी ली।


देवानन्द अर्याल जी

रात्रि भोजन के समय भी हम देव अर्याल जी मिले वहा पर उनका स्वागत सत्कार बहुत ही अच्छा है जो अतिथि एक बार उनसे मिल लेता है वो उनके पास दुबारा जरूर मिलने जाता है।


कैसे जाये


कोहलपुर तराई क्षेत्र में बसा है जो कि प्रवेश द्वार माना जाता है पुरे नेपाल को जाने का।

महेन्द्रनगर से लगभग 200 किमी0 की दुरी पर है। जो की चार घंटे का समय लेती है रोड से।

लखनऊ (भारत ) से भी लगभग 200 किमी0 की दुरी पर है जिन्हे काठमांडू जाना होता है, कोहलपुर से होते हुए जाते है बाय एयर हो या बाय रोड।


कहा ठहरे

वैसे तो कोहलपुर मे बहुत सारे छोटे बड़े होटल, गेस्ट हाउस उपलब्ध है अगर मेरी माने तो एक बार आप होटल सेंट्रल प्लाजा में ज़रूर ठहरे और वहा की अतिथि सत्कार का लुप्त उठाए।


कब जाये
साल के किसी भी समय में यहां जाया जा सकता है लेकिन यह प गर्मी बहुत होती है तो गर्मी में थोड़ा सोचे क्योकि कोहलपुर तराई क्षेत्र में बसा है।


यात्रा आगे भी जारी रहेगी............




Friday 24 November 2017

मेरी नेपाल यात्रा पार्ट -1


                                               
पशुपतिनाथ मंदिर (काठमांडू नेपाल )



यह मेरी खुशकिस्मत ही है जो मैं पिछले कई वर्षो से लगातार नेपाल यात्रा करने का अवसर प्राप्त हो रहा है साथ ही पशुपतिनाथ मंदिर मे जाकर भगवान शिव के दर्शन करने  का सौभाग्य  प्रात होता रहा हैं।

जैसा की मैं पहले भी  बता चूका हु कि मुझे घूमना बहुत अच्छा लगता है तो मैं सदैव ऐसे अवसर की तलाश रहती की मुझे घूमने का अवसर प्राप्त हो और मैं उस अवसर को छोड़ता नहीं हूँ ।

इस वर्ष भी कुछ ऐसा ही हुवा मेरे कुछ मित्रो ने मुझसे घूमने  चलने के लिए कहा और घूमने के लिए जगह भी खुद ही तय करने के लिए कहा तो झट से मेरे मुँह से नेपाल निकल गया मेरे मित्रो के लिए नेपाल एक नयी जगह थी थोड़ा सोच विचार करने के बाद उन्होंने अपनी सहमति दे दी नेपाल चलने के लिए और सारी जिम्मेदारी मुझे सौप दी तैयारी कराने की क्योकि मुझे काफी अनुभव हो चूका है नेपाल मे यात्रा करने का।

अपने मित्रो की सहमिति मिलने के बाद मैंने यात्रा तैयारी शुरू कर दिया और जो मेरे मित्र नेपाल मे रहते है उनसे संपर्क किया और वहा के बारे मे जानकारी इकक्ठा करने लग गया जैसे नेपाल का मौसम वहा की रोड की  स्थिति के बारे मे जानकारी जुटाने के बाद हमने  समय  तय कर लिया की हमको कब निकलना है और और हमने अपने एक मित्र को मना लिया अपनी कार लाने के लिए।

हम लोग सुबह जल्दी निकल गए घर से क्योकि बनबसा (यह शहर भारत और नेपाल के बॉर्डर पर बसा है यहा से 2 km की दुरी पर अन्तराष्टीय
सीमा है ) लगभग 190 km दूर है हमारे शहर (अल्मोड़ा ) से और यह अन्तराष्टीय सीमा  हमेशा खुला नहीं होता है इसकी अपनी समय सीमा  है इसके गेट हर २ घंटे मे  खोला जाता है वाहनों के लिए हालांकि पैदल यात्रियों को जाने दिया जाता है सुबह से शाम  तक।

लेकिन हम १० -१२ बजे तक गेट खुलने के दौरान पहुंच गए , और उस समय अधिक भीड़ भी नहीं थी तो हम आसानी से गड्डाचौकी (यहाँ नेपाल का चेकपोस्ट है ) यहां पहुंचने पर नेपाल कस्टम द्वारा हमारे सामान की चेकिंग की गयी उसके बाद मैंने  भन्सार भरा (हम अपनी कार क द्वारा नेपाल घूमने जा रहे थे ) और हम आगे महेंद्रनगर की और  चल दिए जहां  से सम्पूर्ण नेपाल के लिए  यातायात  की सुबिधा उप्लबब्ध है।

अपने  सभी कागज पूरी करने के बाद अब हम अपने आगे के सफर को जारी रखने को तैयार थे ,


नोट - अगर आप पहली बार
नेपाल यात्रा करने की सोच रहे  हैं तो निम्न बातों का ध्यान रखे........

* अपने पास अपनी पहचान पत्र वोटर आई.डी या ड्राइविंग लाइसेंस कार्ड अवस्य  ले जाये।

* अपनी वाहन के ओरिजिनल पेपर अपने साथ ले जाये और ध्यान दे कि आपकी पेपर की प्रिंटिंग साफ़ हो अगर आप अपनी वाहन ले जा रहे हो तो  /

* अपने साथ कोई भी प्रतिबन्धित सामन न ले जाये /



हालांकि  इंडियन नागरिक को किसी भी वीसा या और किसी तरह की परमिसन  की ज़रुरत नहीं होती है, आप बिना रोक टोक के नेपाल में  घूम सकते है /


आगे की यात्रा मेरे आने वाले आर्टिकल  में पढ़ेंगे......



Thursday 21 September 2017

मेरी जीवन यात्रा

मेरे प्यारे मित्रो मुझे बहुत हर्ष हो रहा है कि मैं अपने कुछ यादगार अनुभवों को आपके साथ बाँटने का अवसर मिल रहा है।

अपने बारे मै.......

मैं एक छोटे शहर अल्मोड़ा  में  रहता हुँ जो पहले उत्तर प्रदेश राज्य का एक पहाड़ी जनपद था लेकिन सन २००० में एक नया राज्य बना दिया जिसका नाम उत्तराँचल रखा गया जो बाद में  बदल कर उत्तराखंड कर दिया।

मैंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा यही से प्राप्त किया और आगे की शिक्षा भी गवर्नमेंट विद्यालय से प्राप्त किया।

जब मे स्कूल में था तभी से मेरे अंदर घूमने का शौक जागने लगा जो धीरे-धीरे बढ़ता ही चला गया और मेरा मन पढ़ाई-लिखाई मे कम घूमने में ज्यादा लगने लगा नतीजा यह हुवा की में पढ़ने में पिछड़ने लगा  फिर भी जैसे तैसे मैंने अपने स्नाक्तोत्तर पास किया।

पढाई के दौरान ही मैंने  अपने जेब खर्चे के लिए काम करना शुरु कर दिया जिससे मुझे अपने सपने को सच करने मे मदद मिलने लगी और मेरी ज़िन्दगी झट से चल पड़ी और मैंने अपने सपने को सच करना शुरू कर दिया।

धीरे -धीरे  मैंने शुरुवात अपने आस पास से किया कुछ वर्षो पश्चात् मैं पूरी तरह आज़ाद हो चूका था उड़ने के लिए  जैसे एक आजाद चिड़िया हो,  मैं जहां भी घूमने जाता हु वहा के बारे मे पता करके यात्रा करता हू  जैसे वहा का मौसम,भाषा,खान-पान आदि।

पिछले कई वर्षो से जब भी मुझे समय मिलता है अपने काम से तो में अपने दोस्तों के साथ घूमने का प्लान बना लेता हु और मेरे दोस्त भी खुशी से मेरा साथ देते है।
 
मुझे बाल्यकाल से ही घूमने,नये लोगों से मिलने तथा उनके बारे में जानने के उत्सुकता रहती है इन सबसे ऊपर मुझे प्रकृति से बहुत प्यार है मुझे ट्रेक्किंग करना बहुत अच्छा लगता है इसलिए मैने ज्यादार पहाड़ी या हिमालियन छेत्रो की ओर ही यात्रा की हैं।

 मेरा ज्यादातर समय घूमने फिरने में बीतने लगा  ये  सब करना अच्छा लगता था जिससे मुझे अपने खर्चो में बढ़ोत्तरी होने लगी और इससे मेरे काम पर भी असर पड़ने लगा और मेरी सारी खुशियाँ दिन व दिन कम होने लगी जिसके कारण मैं अंदर ही अंदर ना खुश होने लगा और मैं किसी ऐसे सख्श के इंतज़ार करने लगा जो मुझे इन सब मुश्किलों से उबार सके।

                           



मुझे किसी अद्रिश्य शक्ति पर भरोषा था यू कहे तो किसी चमत्कार के होने की उम्मीद करने लगा हालाँकि मैं शुरू से ही आस्तिक विचारधारा का हु तो मेरा मन हमेशा मुझे प्रोतसाहित करता रहता था की सब ठीक  जायेगा और मैं अपने मन की ज्यादातर सुनता हु।

बात सन 2009 की है मुझे एक ऐसा देवदूत मिला जिससे मिलने के बाद मेरी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदलने वाली थी (इसके बारे मे ज्यादा आपको यहां पे लिख नहीं पाउँगा लेकिन आप मेरे दिए गए लिंक पर क्लिक करके जान सकते है अंग्रेजी मे लिखी गयी आर्टिकल है जिसे मैंने स्वयं लिखा हैं)


A STORY ABOUT MY TRYST WITH A SPECIAL PERSON !!  दिए गये लिंक को क्लिक करने पर आप मेरे बारे मे और अधिक जान पाएंगे।

अपने उस देवदूत जैसे मित्र से मिलने के बाद मेरी सोच ही बदल गयी और आज जहाँ तक पहुंच पाया हु उसी के मार्गदर्शन पर चलते हुए  फिर मुझे मेरे एक मित्र की सलाह को मानते  सन २०१४ से अपने विचार और यात्राओं को ब्लॉग में  लिखने का अवसर प्राप्त हुवा जो की अंग्रेजी भाषा मे लिखा गया है

http://www.lovetotravel.co.in/  आज से मैंने हिंदी मैं भी ब्लॉग लिखने का विचार  आया और अपना फर्स्ट  आर्टिकल  लिख दिया।

में आशा करता हु की आप सभी मित्रो को मेरा प्रथम आर्टिकल  पसंद आएगा  और मैं  आगे भी अपने विचारो को आपके साथ शेयर करूँगा  जल्दी ही।


अगर आपको मुझे कोई सलाह देनी हो या कोई प्रश्न हो तो आप मुझसे निसंकोच संपर्क कर सकते है  मेरे निचे दिए गए  पते पर

email id :- gajendraslove@gmail.com

facebook id :-https://www.facebook.com/gajendra.singh.58